नवजात शिशु की अच्छी देखभाल | Navjaat Shishu ki Dekhbhal

जब घर में एक नए बच्चे का जन्म होता है तो घर के सभी लोग खुश होते हैं, लेकिन जब नवजात शिशु की देखभाल (Navjaat Shishu ki dekhbhal) करने का समय आता है, तो वे भी चिंतित हो जाते हैं। ऐसे समय में नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें यह जानना जरूरी है।

जन्म के बाद बच्चे की कोनसी चीजे जानना जरूरी है?

बच्चे का जन्म के वक़्त कुछ चीजे जानना महत्वपूर्ण होता हैं।

1) क्या बच्चा जन्म के तुरंत बाद रोया की नहीं?

2) क्या बच्चे के पॉटी की जगह सामान्य है या नहीं ?

3) क्या बच्चा बार-बार उल्टी करता है?

4) क्या शिशु को सांस लेने में तकलीफ हो रही है?

5) क्या बच्चे को दूध पीने में दिक्कत होती है?

यदि उपरोक्त में से कोई भी लक्षण दिखाई देता है, तो बच्चे को तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाना महत्वपूर्ण है।

माता-पिता ने Navjaat Shishu ki Dekhbhal कैसे करनी चाहिए?

नवजात शिशु होने पर माता-पिता हमेशा अपने बच्चे की देखभाल करते हैं। लेकिन बिना घबराए अपने बच्चे की उचित देखभाल करना बहुत जरूरी है। तो आइए जानें नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें

बच्चे को सिर्फ मां का दूध पिलाना

जन्म के आधे घंटे के भीतर बच्चे को स्तनपान (Breast feeding in hindi) कराना जरूरी है। यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे को जल्द से जल्द स्तनपान कराया जाए, भले ही नॉर्मल या सिजेरियन डिलीवरी हुई हो।

मां के शुरुआती दूध को कोलोस्ट्रम कहते हैं। इसमें बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक एंटीबॉडी होते हैं। इसमें मौजूद विटामिन ए बच्चे की आंखों के लिए जरूरी होता है। शिशुओं में पीलिया की घटनाओं को कम करने में भी कोलोस्ट्रम महत्वपूर्ण है। यदि ये सभी लाभ मुफ्त में उपलब्ध हैं और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि आप इनका लाभ उठाएं।

भले ही मां के दूध की आपूर्ति कम हो, बच्चे को स्तनपान कराना जरूरी है क्योंकि बच्चा निप्पल को चूसता है, जो मां के शरीर में ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन का उत्पादन करता है और दूध की आपूर्ति धीरे-धीरे बढ़ने पर मां को हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए।

जन्म के तुरंत बाद स्तनपान कराने से मां और बच्चे के बीच बंधन बढ़ता है ।

बच्चे के शरीर के तापमान की जाँच करना

डेलिवरी के बाद बच्चा अचानक एक अलग वातावरण के संपर्क में आ जाता है जिससे बच्चे के शरीर का तापमान गिर सकता है। ऐसे समय में बच्चे को सूती कपड़े में लपेटना जरूरी होता है।

सर्दियों में बच्चे के शरीर के तापमान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यदि बच्चे के शरीर का तापमान बहुत कम हो जाता है, तो बच्चा सुस्त हो सकता है और बच्चे के जीवन को खतरा होता है।

बच्चे को कपड़े पहन ने का मुहूर्त नहीं देखना चाहिए। बच्चे को पहले दिन से ही कपड़े पहनाए जा सकते हैं।

गर्मी में मौसम गर्म होने के कारण बच्चे के शरीर का तापमान भी अधिक हो सकता है। नवजात शिशु के तापमान को थर्मामीटर से मापना बहुत जरूरी है। यदि शिशु को 100.4 फ़ारेनहाइट से अधिक का बुखार है, तो बुखार की दवा दें।

यदि दवा लेने के बाद भी बुखार कम नहीं होता है और बच्चा सुस्त हो जाता है, तो आपको तुरंत अपने बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।

बच्चे ने पॉटी करना

सबसे पहले यह जांचना जरूरी है कि बच्चे को पॉटी की जगह है या नहीं। यदि पॉटी की जगह सामान्य है, तो शिशु के लिए पहले 24 घंटों के दौरान पॉटी करना महत्वपूर्ण है। यदि बच्चे ने पहले 24 घंटों में पॉटी नहीं किया है और बच्चे का पेट फूला हुआ है या बच्चा ठीक से दूध नहीं पी रहा है, तो तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श करना आवश्यक है।

प्रारंभिक शिशुओं की पॉटी (मेकोनियम) गहरे रंग की होती है। अक्सर, अगर बच्चे की आंतों में रुकावट आती है, तो बच्चा पॉटी नहीं कर सकता है और यह एक आपात स्थिति होती है।अगर बच्चे को 24 घंटे के भीतर पॉटी होती है और फिर बच्चा दिन में 7-8 बार या 3-4 दिनों में एक बार पॉटी करता है तो वो सामान्य होता हैं।

बच्चे ने पेशाब करना

बच्चे के लिए पहले 48 घंटों में पेशाब करना महत्वपूर्ण है। जब बच्चा पेशाब कर रहा हो, तो यह जांचना महत्वपूर्ण है कि बच्चे के पेशाब की धार ठीक से सामने गिर रही हैं की नहीं।

यदि बच्चा लड़का है और बच्चे का पेशाब टपक रहा है, तो बच्चे के मूत्र मार्ग में रुकावट का खतरा होता है। इस तरह की रुकावट को पोस्टीरियर यूरेथ्रल वाल्व कहा जाता है। ऐसे वक़्त अपने बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श करना आवश्यक है।

शिशु के टालू की देखभाल

जब बच्चा पैदा होता है, तो उसकी खोपड़ी की हड्डियाँ जुड़ी नहीं होती हैं, लेकिन वे एक मोटी मांसल झिल्ली से जुड़ी होती हैं।

बच्चे की खोपड़ी पर 4 तरह के टालू होते है। लेकिन सिर के ऊपर की टालू सबसे बड़ी होती है। बच्चे के दिमाग का विकास डेढ़ से दो साल तक चलता है। खोपड़ी की ये हड्डियाँ दिमाग के विकास के लिए जुड़ी नहीं होती हैं।

घर में के लोग इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि टालू कब भरेगा, उस वजह से सिर पर ज्यादा तेल या हल्दी लगा दी जाती है। ऐसे करने पर भी सामने का टालू डेढ़ साल तक ही भरता हैं।

इसके विपरीत, बहुत अधिक तेल लगाने से बच्चे की खोपड़ी पर फंगस पैदा हो सकता है, और वो जगह दिमाग के संपर्क में होती हैं उससे बच्चे के दिमाग में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए बच्चे के सिर पर तेल या हल्दी लगाने से बचें।

शिशु के नाभि की देखभाल

जन्म के समय बच्चे की गर्भनाल 2-3 सेमी छोड़ कर काट दी जाती है सातवें या आठवें दिन गर्भनाल सूख कर नीचे गिर जाती है। गर्भनाल गिरने के बाद नाभि पर तेल लगाने से बचें। 1-2 दिनों में वो जगह सूख जाती हैं। उस जगह पर पाउडर नहीं लगाया जाना चाहिए।

यदि बेम्बी से कोई गंदगी या खून बह रहा है, तो बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श करना आवश्यक है। अक्सर बच्चे की नाभि बहुत ऊंची होती है उस वक़्त बच्चे को नाभि हर्निया हो सकता है। यह हर्निया पेट की मांसपेशियों के बीच की दूरी के कारण बनता है, लेकिन यह दो से तीन साल की उम्र तक कम हो जाता है।

यदि बेम्बी की हर्निया तीन साल बाद बना रहता है, तो उसे सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।

बच्चे की मालिश

बच्चे की मालिश करने से बच्चा शांत होता है। बच्चे के शरीर में रक्त संचार बढ़ता है। पाचन अच्छा होता है, यह बच्चे की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करता है। मां और बच्चे के बीच का रिश्ता और मजबूत होता है।

मालिश करते समय गाने से बच्चे को आराम महसूस होता है। गैस भी कम होती हैं। साधारण नारियल तेल से मालिश करने से लाभ होता है। मालिश के लिए सरसों के तेल या मूंगफली के तेल का प्रयोग न करें। मालिश करते समय बच्चे के कान, नाक और इंद्रियों में तेल न डालें।

यदि आप उपरोक्त तरीके से अपने बच्चे की देखभाल करते हैं और खतरे के संकेतों की पहचान करते हैं, तो आप अपने बच्चे को होने वाले खतरे से बच सकते हैं। अगर आपको उपरोक्त लेख पसंद आया हो तो इसे शेयर करना न भूलें ताकि वे भी इस जानकारी से लाभान्वित हो सकें।

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डॉ निखिल राणे सलाहकार बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट हैं। वह बच्चों के स्वास्थ्य की उचित देखभाल करना पसंद करते हैं।

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