नवजात शिशु मैं पीलिया की बीमारी | Piliya in Newborn

नवजात शिशु के आने से माता-पिता बहुत खुश होते हैं लेकिन अचानक दूसरे या तीसरे दिन से बच्चा पीला (piliya) होने लगता है। इसलिए माता-पिता डर जाते हैं ऐसे वक़्त लेकिन बिना घबराए अपने बाल रोग विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।

शिशु के ऐसे पीले होने को नवजात पीलिया (navjaat piliya)कहा जाता है। ऐसे वक़्त कुछ बातें जानना जरूरी है। इस लेख को पूरी तरह से समझें और अपनी सभी शंकाओं का समाधान करें ताकि आप मजबूत हो सकें और बिना घबराए बच्चे की उचित देखभाल कर सकें।

नवजात पीलिया क्या है? (What is Navjaat Piliya?)

नवजात की त्वचा और आंखों का पीला पड़ना इसका मतलब नवजात पीलिया होता हैं। इस पीलिया का कारण बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन का उच्च स्तर होता है।

नवजात शिशु में लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बिलीरुबिन बढ़ जाता है। नवजात शिशु का लीवर पहले कुछ दिनों में अपरिपक्व होता है। इसका मुख्य कार्य आंत के माध्यम से बिलीरुबिन को बाहर निकालना होता है। लेकिन चूंकि यकृत अपरिपक्व होता है, रक्त में बिलीरुबिन का निर्माण शुरू हो जाता है और नवजात शिशु में पीलिया विकसित हो जाता है।

नवजात पीलिया नवजात बच्चो में बहुत आम है।

नवजात शिशुओं में पीलिया क्यों होता है? (navjaat piliya ke karan kya hote hain ?)

नवजात शिशु में पीलिया होने का कारण है

  •     यदि बच्चा ३७ हफ्ते से पहिले पैदा होता हैं,
  •     अगर बच्चे का दूध से पेट नहीं भर रहा होगा
  •     अगर बच्चे का ब्लड ग्रुप मां के ब्लड ग्रुप के अनुकूल नहीं है,

अगर नवजात का ब्लड ग्रुप मां के निगेटिव ब्लड ग्रुप से मेल नहीं खाता है तो बच्चे के खून में एंटीबॉडीज बन जाती हैं। जो बच्चे के रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करते हैं और उसे नष्ट कर देते हैं। उससे बच्चे के खून में बिलीरुबिन की मात्रा को काफी बढ़ा जाती हैं ।

नवजात शिशुओं में पीलिया के लक्षण क्या हैं? (piliya ke lakshan kya hote hain?)

बच्चे के पीलिया का पहला लक्षण बच्चे की त्वचा और आंखों का पीला पड़ना होता है।

पीलिया पहले चेहरे पर, फिर छाती, पेट, हाथ और पैरों पर और अंत में हाथों की हथेलियों पर दिखाई देता है। बच्चे को बुखार भी आ सकता हैं।

कभी-कभी नवजात शिशु के रक्त में सामान्य रूप से उच्च स्तर का बिलीरुबिन बच्चे के मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इस स्थिति को कर्निकटेरस कहते हैं। ऐसे समय में देखा जाता है कि बच्चे को झटका आ सकता हैं और बच्चे की मांसपेशियों की टोन बढ़ जाती है।

  •     बच्चे में पीला पेशाब।
  •     बच्चा मां का दूध ठीक से नहीं पीता।
  •     बच्चा सहमा हुआ रहना।

ऐसे लक्षण दिखाई देते ही बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।

नवजात पीलिया का निदान कैसे किया जाता है? (piliya ka nidan kaise kiya jata hain?)

नवजात शिशु के पीलिया का निदान करने के लिए, डॉक्टर बच्चे के कपड़े हटा देते है और देखते है कि अच्छी रोशनी में पीलापन कितनी दूर तक फैल गया है।

वे बच्चे की आंख के श्वेतपटल (आंख का सफेद भाग) की भी जांच करते हैं, लेकिन भले ही वह पीला हो, बच्चे को पीलिया का निदान किया जाता है। कभी-कभी डॉक्टर बच्चे के मूत्र और पॉटी के रंग के बारे में भी पूछ सकते हैं।

रक्त परीक्षण – यदि डॉक्टर को लगता है कि बच्चे को पीलिया है और यह बहुत अधिक है, तो वे बच्चे के रक्त परीक्षण के लिए कह सकते हैं।

यदि पीलिया कम है, तो डॉक्टर रक्त परीक्षण से बच सकते हैं। इन रक्त परीक्षणों में मुख्य रूप से सीरम बिलीरुबिन, रक्त समूह परीक्षण शामिल हैं, यह समझने के लिए कि बच्चे का पीलिया इतना क्यों बढ़ गया है।

कुछ अस्पतालों में, बच्चे के बिलीरुबिन का परीक्षण एक ट्रांसक्यूटनियस बिलीरुबिन बैटरी पर किया जाता है जो बच्चे की त्वचा पर मशीन से प्रकाश किरणों का उत्सर्जन करती है और बच्चे के शरीर में बिलीरुबिन की मात्रा को मापती है, इस आधार पर कि त्वचा से कितना प्रकाश परावर्तित होता है या कितना प्रकाश अवशोषित होता है।

कभी-कभी मां और बच्चे का ब्लड ग्रुप अलग अलग होता है, खासकर अगर मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव हो और बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव हो।

नवजात शिशुओं में पीलिया के उपचार क्या हैं? (navjaat piliya ka upchar kya hain ?)

यदि नवजात शिशु को पीलिया है और रक्त में बिलीरुबिन 15 मिलीग्राम से अधिक है और बच्चा पर्याप्त दूध नहीं पी रहा है, तो बच्चे को आईसीयू में भर्ती करने की आवश्यकता हो सकती है।

लेकिन ज्यादातर मामलों में बच्चे का पीलिया इतना गंभीर नहीं होता है कि अगर घर पर ही बच्चे की ठीक से देखभाल की जाए तो कुछ ही दिनों में बच्चे को पीलिया से छुटकारा मिल सकता है।

  • सूरज की रोशनी

सबसे सस्ता और सबसे उपलब्ध उपचार उपलब्ध धूप है। नवजात को पीलिया हो तो सुबह की धुप दिखाना लाभकारी होता है। पंद्रह से बीस मिनट के लिए बच्चे को इस तेज धूप में छोड़ने से बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन टूट जाता है और मूत्रमार्ग के माध्यम से बाहर निकल जाता है। सुबह सुबह की धूप दिखाएं। 8 बजे के बाद की धूप न दिखाएं क्योंकि यह गर्मी बच्चे के शरीर में डिहाइड्रेशन का कारण बन सकती है। इससे शिशु को नींद आ सकती है।

  • पीलिया के लिए फोटोथेरेपी (Phototherapy for piliya)

जिन शिशुओं को एनआईसीयू में भर्ती करना पड़ता हैं, उन्हें एक इनक्यूबेटर में रखा जाता है और एक विशेष नीली बत्ती दी जाती है। जब वह दे रहे हो तब बच्चे की आंखें और जननांग ढके होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि त्वचा को नुकसान से बचाने के लिए और बच्चे की आंखों के रेटिना को नुकसान न हो । फोटो थैरेपी से बच्चे का पीलिया दो से तीन दिन में कम हो जाता है।

यदि बच्चे का पीलिया गंभीर है, तो एक्सचेंज ट्रांसफूजन की आवश्यकता हो सकती है। एक्सचेंज ट्रांसफूजन में नवजात बच्चे के शरीर में से पूरा खून बदल से दूसरा खून ट्रांसफ्यूज़ किया जाता हैं।

  • माँ का दूध (Maa ka Dudh for piliya)

अगर आपके बच्चे का बिलीरुबिन कम है, तो आप घर पर ही बच्चे की अच्छी देखभाल कर सकती हैं और बच्चे के पीलिया को कम कर सकती हैं। इसके लिए जरूरी है कि आप अपने बच्चे को हर दो घंटे में स्तनपान कराएं।

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डॉ निखिल राणे सलाहकार बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट हैं। वह बच्चों के स्वास्थ्य की उचित देखभाल करना पसंद करते हैं।

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