Congenital hypertrophic pyloric stenosis in Hindi : जन्मजात हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस नवजात शिशुओं के जठर (स्टमक) मार्ग की एक बीमारी है। इस बीमारी के कुछ खास लक्षण होते हैं और अगर इस बीमारी को नजरअंदाज कर दिया जाए तो बच्चे की जान भी खतरे में पड़ जाती है। इसलिए इस बीमारी के प्रति जागरूक होना बेहद जरूरी है।
आइए अब जन्मजात हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस के बारे में सही जानकारी पता करें। आइए सबसे पहले पेट की संरचना के बारे में जानते हैं।
पेट की संरचना क्या है?
जब बच्चा दूध पीता है, तो वह मुंह से अन्ननलिका में जाता है और अन्ननलिका के सामने जठर होता है। जठर के चार भाग होते हैं। अन्ननलिका से जुड़ा प्रारंभिक भाग कार्डिया है। कार्डिया का अगला भाग फंडस है और अगला भाग शरीर है और अंतिम भाग पाइलोरस है।
पाइलोरस का यह हिस्सा छोटी आंत से जुड़ा होता है और एक वाल्व के रूप में कार्य करता है। तो जब भोजन पेट में पचता है तब वो खुलता है और अन्न छोटी आंत में प्रवेश करता है।
जन्मजात हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस क्या है?
जिस तरह से इस रोग को जन्मजात कहा जाता है, इसका मतलब यह रोग जन्मजात होता है। हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस जठर के पाइलोरस भाग की सूजन होती हैं ।
जन्म के बाद पाइलोरस की सूजन बढ़ जाती है। इसलिए, जब बच्चा एक महीने का होता है, तो वह सूज जाता है और मार्ग बहुत छोटा हो जाता है, इसलिए दूध छोटी आंत में प्रवेश नहीं कर पाता है और यह पेट में जमा रहता है, इसलिए स्टमक भरा हुआ होता है और इसकी वजह से बच्चा बार बार उलटी करता हैं ।
यह रोग पैदा होने वाले 1000 बच्चों में से 2-3 में देखा जाता है। लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह बीमारी चार गुना अधिक होती है। आनुवंशिकता भी रोग का कारण होता है।
यह रोग पूरे दिन के बच्चों की तुलना में कम दिन के बच्चों में अधिक आम है। यदि गर्भावस्था के दौरान माँ धूम्रपान करती है, उसके बच्चे को यह रोग होने की संभावना अधिक होती है।
इस रोग के लक्षण तब शुरू होते हैं, जब बच्चा एक महीने का हो जाता है। इस स्थिति में, पर्याप्त भोजन की कमी और बार-बार उल्टी होने के कारण बच्चा सामान्य रूप से विकसित नहीं होता है। इसलिए, इस बीमारी का शीघ्र निदान और उपचार बहुत महत्वपूर्ण है।
Congenital hypertrophic pyloric stenosis के लक्षण क्या हैं?
पाइलोरिक स्टेनोसिस के लक्षण 3-4 सप्ताह की उम्र से और 4-5 महीने के भीतर दिखाई देते हैं। इसलिए इस रोग को इन्फेंटाइल हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस (Infantile hypertrophic pyloric stenosis in hindi) भी कहा जाता है। पाइलोरिक स्टेनोसिस के लक्षण इस प्रकार हैं।
1) दूध पीने के तुरंत बाद उल्टी होना – दूध पीने के बाद बच्चा जोर से उल्टी करता है। इस उल्टी को दूर तक फेंकी जा सकती हैं। शुरुआत में उल्टी हल्की होती है। लेकिन जैसे-जैसे पाइलोरस का रास्ता छोटा होता जाता है, उल्टी की दर और अधिक बढ़ जाता हैं। उल्टी सफेद होती है। बार-बार उल्टी होने से बच्चे के शरीर में सोडियम, पोटेशियम और गैस्ट्रिक एसिड की मात्रा कम हो जाती है। तो इसका शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है।
२) बार-बार भूख लगना – बच्चे को दूध नहीं पच रहा होता है, इसकी वजह से बच्चे को भूक लगती हैं और बच्चा हमेशा भूख से रोता रहता है।
3) पेट पर स्टमक की हलचल को समझें – दूध पिलाने के बाद और बच्चे को उल्टी करने से पहले बच्चे के पेट पर स्टमक की हलचल दिखाई देती है। ऐसे समय में पेट की मांसपेशियां दूध को पेट में आगे की ओर धकेलने की कोशिश करती हैं।
4) डिहाइड्रेशन – बच्चे को बार-बार उल्टी और भोजन की कमी के कारण डिहाइड्रेशन होने लगता है और बच्चा सुस्त हो जाता है।
5) शौच की कमी – बच्चा शौच नहीं करता है उसने पिया हुवा दूध का पाचन ठीकसे नहीं होता और इसलिए बच्चे का वजन नहीं बढ़ता है या वजन कम होता है।
जन्मजात हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस का निदान कैसे किया जाता है?
डॉक्टर इसके लक्षणों और शारीरिक जांच के आधार पर बच्चे में जन्मजात हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस का निदान करते हैं। पेट की जांच से डॉक्टरों को पता चलता है कि पेट के ऊपरी हिस्से में एक गांठ है। गांठ आकार में जैतून के फल के समान है। इसके अलावा, बच्चे के उल्टी करने से पहले या दूध पिलाने के बाद, उस जगह पर एक लहर की तरह गति दिखाता है। इससे डॉक्टर पाइलोरिक स्टेनोसिस का निदान करते हैं। निदान की पुष्टि के लिए निम्न प्रकार के परीक्षण भी किए जाते हैं।
१) रक्त परीक्षण – ये परीक्षण बच्चे के शरीर के इलेक्ट्रोलाइट के साथ ही हीमोग्लोबिन और पूर्व-संचालन परीक्षणों पर किए जाते हैं।
2) पेट की सोनोग्राफी – सोनोग्राफी से पेट में पाइलोरस की सूजन का पता चलता है।
3) पेट का एक्स-रे – बच्चे को बेरियम नामक एक विशेष डाई देने के बाद बच्चे के पेट का एक्स-रे लिया जाता है। यह एक्स-रे पेट में पाइलोरस के पास एक रुकावट दिखाता है। यह परीक्षा तब की जाती है जब शारीरिक परीक्षण के साथ-साथ पेट की सोनोग्राफी संभव न हो।
जन्मजात हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस का उपचार क्या है?
पाइलोरिक स्टेनोसिस का एकमात्र स्थायी उपचार सर्जरी है। लेकिन ऐसा करने से पहले, बच्चे के स्वास्थ्य को स्थिर करना बहुत जरूरी है क्योंकि इस बीमारी से पीड़ित बच्चा अक्सर अस्पताल आता है क्योंकि वह बहुत सुस्त होता है। इसलिए ऑपरेशन के लिए बच्चे का फिट होना बहुत जरूरी है। इसके लिए निम्न प्रकार के उपचार का उपयोग किया जाता है।
१) बच्चे को सलाइन दिया जाता है – बच्चे को उतना ही सलाइन दिया जाता है जितना उसे बच्चे के शरीर में डिहाइड्रेशन और इलेक्ट्रोलाइट को सामान्य करने की आवश्यकता होती है। इसलिए बच्चा ऑपरेशन के लिए फिट होता हैं।
2) बच्चे का ऑपरेशन किया जाता है – ऑपरेशन के लिए बच्चे के फिट होने के बाद, बाल रोग सर्जन ऑपरेशन के बारे में पूरी जानकारी बताते हैं। ऑपरेशन से पहले बच्चे को स्तनपान नहीं कराना चाहिए क्योंकि ऑपरेशन एनेस्थीसिया द्वारा किया जाता है। यह एनेस्थीसिया के दौरान बच्चे को उल्टी होने से रोकता है।
एनेस्थीसिया के बाद, सर्जन बच्चे के पेट में एक चीरा लगाता है और फिर स्टमक के बढ़े हुए पाइलोरस में एक चीरा लगाया जाता है। यह पाइलोरस को साफ करता है और पेट से दूध को बिना किसी रुकावट के छोटी आंत में प्रवेश करने देता है। फिर बच्चे के पेट में बने चीरे को टाको से बंद कर दिया जाता है। इस ऑपरेशन को रामस्टेड पाइलोरोमायोटॉमी (Ramsted pyloromyotomy in hindi) कहा जाता है।
ऑपरेशन में एक से डेढ़ घंटे का समय लग सकता है। ऑपरेशन के बाद दो से तीन दिनों तक बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया जा सकता है। ऑपरेशन के बाद बच्चे की उल्टी की दर बहुत कम होती है।
एक विशेषज्ञ बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा समय पर उपचार और सर्जरी बच्चे के जीवन को खतरे में डालने से बचाती है। पाइलोरोमायोटॉमी की सफलता दर अच्छी होती है और भविष्य में बच्चे को इससे पीड़ित नहीं होता है। ऑपरेशन के बाद डॉक्टर की सलाह का पालन करें। जैसे ही बच्चा दूध को पचाना शुरू करता है, अगले कुछ दिनों में बच्चे का वजन बढ़ना शुरू हो जाता है।
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